NDTV ने जालंधर के भगतों की एक बड़ी साफ राजनीतिक तस्वीर दी है जिसे रवीश कुमार ने दिखाया है. लीजिए नीचे लिंक हाजिर है. क्लिक कीजिए, देखिए, समझिए और सोचिए.
आपकी सहूलियत के लिए रवीश की प्रारंभिक टिप्पणी को मैंने लिपिबद्ध करके नीचे दिया है:-.
"नमस्कार मैं रवीश कुमार (साथ में एनडी टीवी की सहयोगी रिपोर्टर सर्वप्रिया सांगवान), हिंदुस्तान में सबसे ज़्यादा दलित पंजाब में रहते हैं और पंजाब में गरीबी रेखा से नीचे के जो लोग हैं उनमें से भी सबसे ज़्यादा दलित हैं. लेकिन इसके बावजूद एक तबका दलितों में ऐसा है जो ठीक-ठाक से बेहद के स्केल पर आर्थिक रूप से समृद्ध हुआ है. लेकिन अगर आप उत्तर प्रदेश से तुलना करेंगी तो उसकी तुलना में पंजाब के दलितों ने राजनीति में अपना वर्चस्व कायम नहीं किया है और उसके अनेक कारण रहे होंगे कि क्यों नहीं किया है. मगर एक कमी यह रह जाती है कि हम अकसर अपनी चुनावी रिपोर्टिंग में जो रिज़र्व सीट है उसके भीतर की विविधता और अंतर्विरोध को बहुत ज़्यादा तवज्जो नहीं देते हैं क्योंकि उन सीटों पर कोई अरविंद केजरीवाल या नरेंद्र मोदी या मुलायम सिंह यादव इस स्तर के नेता नहीं होते हैं और इसका नतीजा यह होता है कि वो सिर्फ गिन लिए जाते हैं कि लोकसभा की 70 से 80 सीटें हैं और उनमें जा कर यह जीतेगी या इस पार्टी ने यह उम्मीदवार दिया है. पंजाब में दलित राजनीति की कामयाबी और उसकी नाकामी दोनों को समझना हो तो जालंधर सबसे अच्छा सेंटर है. यह उसके पूरे संकट को बताता है कि किस तरह से यहाँ का जो दलित है उसको पार्टियों ने रविदासिए समाज में, वाल्मीकि समाज में और बरार समाज में और कबीरपंथी जो अपने आप को भगत कहते हैं उन तमाम तरह के समाजों में बाँट दिया है.
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