"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


13 November 2019

Megh and Naag Vansh - मेघ और नागवंश

मेघों को मेघऋषि से जोड़ने वाली बात मेघ समाजों की लोकस्मृति में रही है.  श्री आर.एल. गोत्रा ने अपने आलेख Meghs of India में ऋग्वैदिक कथाओं का अध्ययन करके वृत्र या प्रथम मेघ को एक ही पात्र पाया है. लेकिन वैदिक कथा के आधार पर उस पात्र के जीवन-काल का निर्णय नहीं किया जा सकता. इसलिए ऐतिहासिक कालक्रम की दृष्टि से वो पात्र सवालों से सर्वथा मुक्त नहीं है. कथा में वृत्र, मेघऋषि या प्रथम मेघ को अहिमेघ (नागमेघ) भी कहा गया है. संभव है ऐसा शत्रुता भाव के कारण कहा गया हो या उसके वंश (नाग वंश) के संदर्भ में उसे अहि (नाग) कहा गया हो.

Dr. Naval Viyogi, D.Litt.
आजकल डॉ. नवल वियोगीD. Litt in History and Culture from the Round Table University, Erazona, U.S.A. की पुस्तक “प्राचीन भारत के शासक नाग, उनकी उत्पत्ति और इतिहास” पढ़ रहा हूँ. वे Director, Indian National Historical Reserch Council (National Award Winner in Research Work, 1986) रह चुके हैं. उक्त पुस्तक के पृष्ठ 141 पर कुछ कड़ियों को डॉ. नवल ने जोड़ा है जो मेरे जैसे पाठक के लिए चौंकाने वाला रहा. उन्होंने बताया है कि नागवंशियों से अनेक जातियाँ निकली हैं जिन्हें आदिवासी होने के कारण चौथे वर्ण में रखा गया. इन जातियों में डॉ. नवल ने अन्य जातियों के साथ-साथ मेघ जाति को भी रखा है. टाक क्षत्रिय शासकों के गोत्रों का उल्लेख करते हुए वे उनके मालव और मद्र गोत्रों का उल्लेख करते हैं. उनका मानना है कि टाक वंश में इन गोत्रों का नाम होना इस बात का प्रमाण है कि ये शाखाएँ ऐतिहासिक सत्य हैं. इनका प्रसार आसाम की नाग जातियों तक है. इसके अलावा इनके गोत्रों की सूची में महार, मदर (मद्र अथवा मेघों का अन्य नाम), महरा, सलोतरी (साल्व गोत्री जिनका संबंध मद्रों से था) वगैरा को उन्होंने उस सूची में रखा है.

अब मद्र, मेघ, मेद, मेदे, ये कैसे जुड़े हैं उसकी व्याख्या इस आलेख में मिल जाती है जो ताराराम जी ने लिखा है. ताराराम जी 'मेघवंश - इतिहास और संस्कृति' पुस्तक के लेखक हैं. इस जानकारी के आधार पर इतना तो कहा जा सकता है कि मेघ वंश और नाग वंश संभवतः एक ही वंश के दो नाम रहे होंगे जैसा कि मेघ और अहिमेघ नामों से प्रकट होता है, या फिर वे दोनों वंश अतीत में निकट संबंधी रहे हैं. डॉ. नवल ने अपनी उक्त पुस्तक में जो जानकारी दी है वो पठनीय है. सुझाव यह है कि रुचि रखने वाले इसे खरीद कर अवश्य पढ़ें.

डॉ. नवल वियोगी नागवंश का इतिहास खोजते हुए महाभारत की कथाओं की उपेक्षा नहीं करते चाहे उनमें पेश की गई तस्वीर धुँधली ही क्यों न हो. उनका मत है कि नाग वंशी अनार्य लोग थे जिनकी उत्पत्ति कश्यप ऋषि से हुई होगी. ये नाग लोग मूल रूप में नाग पूजक थे और नाग कहलाए. नाग पूजा कहाँ से चल कर कहाँ तक पहुँची उसका उल्लेख 
पर्याप्त संदर्भों के साथ इसमें कर दिया गया है. नाग वंशी भारत में कहाँ-कहाँ बसे हैं उसका वर्णन भी इस पुस्तक में है.

पुस्तक की भूमिका में डॉ. नवल लिखते हैं कि तक्षक या टाक जनजातियों से अनेक जातियों का जन्म हुआ है जिनमें कई अन्य जातियों के अतिरिक्त महार, मराठा, कुर्मी आदि जातियों के साथ-साथ मेघ (कोली) भी हैॆं. बुद्ध के जीवन काल (567 से 487 ई.पू) में मद्र लोग बुनकर थे. इसी काल के दौरान टका (तक्षक यानि नागवंशी) लोगों का टका, मेघ या मद्र नाम से विभाजन हो चुका था. कन्निंघम के हवाले से बताया गया है कि जम्मू में दक्षिण के पहाड़ी इलाके में बसी ये जातियाँ पूर्व काल में शासक जातियाँ रही होंगी. उनका ऐसा कथन इस तथ्य को समाहित करते हुए है कि ये जातियाँ श्रम संस्कृति की वाहक थीं.

यौधेयों के साथ संबंध को लेकर डॉ. नवल ने यह जानकारी दी है कि कुषानों को भारत की सीमाओं से जब बाहर निकाला गया तब यौधेयों को कुनिंदाओं ने बहुमूल्य सहयोग दिया. इन कुनिंदाओं का सतलुज और ब्यास के बीच के ऊपरी क्षेत्र पर अधिकार था. बनावट और सजावट के नज़रिए से उनके सिक्के उसी काल के यौधेयों के सिक्कों जैसे ही थे जो दर्शाता है कि यौधेयों के साथ उनके रिश्ते गहरे थे. ये कुनिंदा बुनकर थे जिनके बारे में कहा गया है कि उनका जन्म मद्रों से हुआ था और वे उसी क्षेत्र के थे जिस पर मद्रों का शासन रह चुका था.

अपनी इस पुस्तक में डॉ. नवल यह मान कर चले हैं कि भाषा की दृष्टि से संस्कृत पहले आई थी और पाली बाद में. यानि संस्कृत के शब्द बिगड़ कर पाली बनी. भाषाविज्ञान की जो बातें डॉ. नवल के समय में पढ़ाई जा रही थीं उसके अनुसार उनका वैसा सोचना-मानना ठीक कहा जाएगा. लेकिन इस बीच जो नया शोध हुआ उसके अनुसार प्राकृत और पाली के कई शब्दों को संस्कृत के अनुकूल बना (adapt) कर उनका स्वरूप बदला गया और नतीजतन उनके मतलब बदल गए. उन्होंने जिस कालखंड के मेघों के संदर्भ में चाणक्य का उल्लेख किया है वो भी अब सवालों के घेरे में है. आधुनिक इतिहासकारों ने चाणक्य नामक पात्र की ऐतिहासिकता पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं. काश ये जानकारियाँ डॉ. नवल के जीवन काल उन्हें उपलब्ध हो गई होतीं. ख़ैर!     

पुस्तक पढ़ते समय इस बात को ध्यान में रख कर पढ़ना चाहिए कि इसमें मेघों या मद्रों का उल्लेख विभिन्न नाग वंशी जातियों की उत्पत्ति और इतिहास के संदर्भ में हुआ है. इसमें अपना इतिहास ढूँढने के लिए अपने अध्ययन के औज़ारों को पास रखना होगा.

(15-11-2019 नोटयद्यपि नवल जी की उक्त पुस्तक में 'कुनिंदा', 'कुनिंदाओं' जैसे शब्द का प्रयोग हुआ है तथापि मुझे इस शब्द की वर्तनी (स्पैलिंग) को लेकर कुछ संशय था. महाभारत में कुछ ऐसा ही शब्द कभी पढ़ा था. ढूँढने पर पता चला कि वो शब्द 'कुनिंदा' न हो कर 'कुनिंद' है जिसे महाभारत में 'कुणिंद' लिखा गया है. इसका कारण अंग्रेज़ी में इसकी वर्तनी Kuninda हो सकती है.)

मेघ सभ्यता

नाग और ड्रैगन







प्राचीन भारत के शासक नाग, उनकी उत्पत्ति और इतिहास

लेखक - डॉ. नवल वियोगी
प्रकाशक - सम्यक प्रकाशन, 32/3, पश्चिम पुरी, 
नई दिल्ली-110063
मूल्य : Rs.300/-

मोबाइल - 9818390161, 9810249452




1 comment:

  1. ऐतिहासिक तथ्यों से ... उसकी व्याख्या को समेटे होगी ये किताब ...
    रोचक ...

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